शनिवार, 28 मार्च 2009

मनोज कामदार की कविता

कविता

मैने सोचा मै भी लिखू कविता।
पहले खाकर एक पपीता ॥

फिर मै बन जाऊंगा कवि।
ऐसा कहता है रोज सुबह रवि॥

इतनी चले मेरी कविता संसार में
कविता लिखू मै कवि बननेके प्यार में॥

तन रहता है स्वस्थ पपीता से।
मन प्रफुलित रहता है कविता से॥

जब में लिखू तो एसी मेरी कविता हो।
जिसमे रामायण और गिता हो॥

कविता लिखने का करता हूँ मै काम ।
इसलिए मेरी कविता का कविता ही नाम॥

मेरी कविता सदा रहे सलामत।
कभी न आए इस पर कयामत ॥

शनिवार, 14 फ़रवरी 2009

0८/o४/२००७- मेरी ज़िन्दगी का सबसे बुरा दिन

उस रात जब मैं सो रहा था तब अचानक ४ बजे मुझे कुछ लोगों के रोने की आवाज़ सुनाई दी। मै चौंक कर उठा तो मैने देखा की घर पर बहुत सारे लोग इकट्ठे हुए है और सभी रो रहे है। उस समय मेरी वार्षिक परीक्षाएं चल रही थी और मेरी पुरी तरह से पढ़ाई भी नही हो पाई थी की यह वाकया हो गया। यह मेरी अभी तक की ज़िन्दगी का सबसे बुरा दिन था। मै जानना चाहता था की आख़िर हुआ क्या है। परन्तु मुझे कोई बताने को तैयार ही नही था सब रोये ही जा रहे थे। मेरे पापा कई जगहों पर फ़ोन लगा कर सबको बुला रहे थे। मुझे यह बताने के लिए किसी के पास समय नही था की आख़िर ऐसा क्या हो गया है। फिर मेरी नज़र अचानक मेरी दादी पर पड़ी। वह सो रही थी। उन्हें बहुत सारी औरतें घेरकर रो रही थी। मुझे कुछ समझ नही आ रहा था की आख़िर ये सब क्या हो रहा है। मै पापा के पास गया और पूछा की पापा दादी सो रही है लेकिन उन्हें इतने लोग घेरकर बैठे है और रो रहे है। सब ऐसा क्यो कर रहे है ? पापा ने कहा की दादी अब कभी भी नही उठेंगी तुमसे बोलेगी भी नही। मैने पूछा मुझसे ऐसी कौनसी गलती हो गई। दादी मुझसे बात क्यो नही करेंगी। तब मुझे पता चला कि मेरी दादी शांत हो गई है। रात को १ बजे उनकी मौत हो गई। मैने इससे पहले कभी किसी को मरते हुए नही देखा था। मै रोने लगा। मै उन्हें सबसे ज्यादा प्यार करता था। वह पिछले १ महीने से बीमार थी और उन्होंने १ महीने से कुछ भी नही खाया था। २१ दिन उन्होंने सिर्फ़ पानी और ज्यूस पीकर निकाले। वह कुछ बोल भी नही पाती थी। और फिर २१ दिनों के बाद उनकी मौत हो गई वह मुझे अकेला छोड़ कर चली गई.मै कई दिनों तक उन्हें याद करके रोता रहा। परन्तु धीरे -धीरे ये समझ गया कि हर कोई हमारा साथ अंत तक नही दे सकता। किसी मज़बूरी के कारण वह हमें छोड़ कर चला जाता है और कई बार धोखा देकर। कई लोग अपना स्वार्थ पुरा करके हमें बिच राह मै छोड़ देते है और कई लोग हमें प्यार करते हुए भी मजबूरीवश हमें छोड़ देते है। इससे हमारी ज़िन्दगी ख़त्म नही हो जाती। मेरी दादी कि यादें हमेशा मेरे साथ रहेंगी, मै उन्हें कभी नही भूल पाऊंगा।
मेरी दादी कि स्मृति मैं .......

रविवार, 1 फ़रवरी 2009

बहादुर पटेल की कविता

नदी
मेरे भीतर एक नदी बहती हुई
उसके शीतल जल से
हहराता हुआ एक पेड़ घना
हवा के झोको से हिलता

वही किनारा पर
मिटटी गाँव की
बस चुकी है फेफडो में मेरे

एक कुम्हार बनाता है घडा
नदी से भरता घडा
बिल्कुल ठंडा और सुगंध से भरा पानी
जिसे पीते ही गलने लगती है प्यास
उदास चेहरे
पपडाते होठो पर
सुकून की छाया तैरने लगती है

नदी मेरे भीतर पैदा करती है एक संसार।

शनिवार, 24 जनवरी 2009

नागार्जुन की कविता

मेघ बजे

धिन-धी-धा धमक-धमक
मेघ बजे
दामिनि यह गयी दमक
मेघ बजे
धरती का ह्दय धुला
मेघ बजे
पंक बना हरिचन्दन
मेघ बजे
हल का है अभिनन्दन
मेघ बजे।
धिन-धिन-धा धमक-धमक
मेघ बजे।

शुक्रवार, 9 जनवरी 2009

संजीव ठाकुर की कहानी

ज़्यादा किसे मिलें ?

एक बार की बात है।किसी गाँव में दो अजनबी घूमते-घामते पहुँचे। शाम हो गयी थी। वे रात उसी गाँव में बिताना चाहते थे। वे मुखिया के पास गए और उनसे रात गाँव में ठहर जाने की अनुमति माँगी। मुखिया ने दोनों को गाँव की अतिथिशाला में ठहरने की अनुमति दे दी। मुखिया ने कहा, ''रात में आपको खाना भी मिलेगा। आप खाकर आराम से सोइए। मगर हमारे गाँव का एक नियम है....!''
अजनबियों ने पूछा,''कैसा नियम?'' तो मुखिया ने कहा,''नियम यह है कि कोई अतिथि सोते हुए खर्राटे नहीं ले सकता। खर्राटे लिए तो हम उसे मार डालेंगे।''
अजनबियों ने शर्त मान ली और वे अतिथिशाला में चले गए। रात को खाना खाकर दोनों सो गए। थोडी ही देर में एक अजनबी खर्राटे लेने लगा। इससे दुसरे की नींद खुल गयी। उसने सोचा गाँव वाले इसके खर्राटे सुनकर आते ही होंगे। अब तो जान गयी। इस संकट से बचने का उसे एक विचार आया और वह जोर-जोर से गाने लगा। गाने की आवाज़ सुनकर मुखिया वह पहुँच गया। धीरे-धीरे गाँव वाले भी पहुँच गए। सभी मिल कर गाने लगे। वे रात भर गाते रहे। दुसरे अजनबी के खर्राटे कोई नहीं सुन पाया।
सुबह उठकर जब दोनों जाने लगे तो मुखिया ने उन्हें सिक्कों से भरा एक थैला दिया और कहा,''रात हम लोगों ने काफी अच्छा समय बिताया इसलिए यह तोहफा आपके लिए है।''
थैला लेकर दोनों विदा हुए। गाँव से बाहर निकलते ही दोनों झगड़ने लगे। दोनों अपने लिए ज़्यादा सिक्कों की मांग कर रहे थे। दूसरे का कहना था,''मैंने गाना गाकर तुम्हारी जान बचाई इसलिए ज्यादा सिक्के मैं लूँगा।'' और पहला तर्क दे रहा था,''अगर मैं खर्राटे नहीं लेता तो तुम्हें गाने का मौका ही नहीं मिलता। इसलिए ज्यादा सिक्के मैं लूँगा।''
दोनों इस बात पर देर तक लड़ते रहे। आखिर तक वे किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाए। क्या तुम बता सकते हो की ज्यादा सिक्कों का हकदार कौन है?

सोमवार, 24 नवंबर 2008

नवीन सागर की कविता

देना

जिसने मेरा घर जलाया
उसे इतना बड़ा घर
देना कि बाहर निकलने को चले
पर निकल न पाए

जिसने मुझे मारा
उसे सब देना
मृत्यु न देना

जिसने मेरी रोटी छीनी
उसे रोटियों के समुद्र में फेंकना
और तूफान उठाना

जिनसे मैं नहीं मिला
उनसे मिलवाना
मुझे इतनी दूर छोड़ आना
कि बारबार संसार में आता रहूँ

अगली बार
इतना प्रेम देना
कि कह सकूं : प्रेम करता हूँ
और वह मेरे सामने हो।

मंगलवार, 18 नवंबर 2008

पहली बार लिखा

मैंने आज से अपना ब्लॉग शुरू किया है।