शनिवार, 14 फ़रवरी 2009

0८/o४/२००७- मेरी ज़िन्दगी का सबसे बुरा दिन

उस रात जब मैं सो रहा था तब अचानक ४ बजे मुझे कुछ लोगों के रोने की आवाज़ सुनाई दी। मै चौंक कर उठा तो मैने देखा की घर पर बहुत सारे लोग इकट्ठे हुए है और सभी रो रहे है। उस समय मेरी वार्षिक परीक्षाएं चल रही थी और मेरी पुरी तरह से पढ़ाई भी नही हो पाई थी की यह वाकया हो गया। यह मेरी अभी तक की ज़िन्दगी का सबसे बुरा दिन था। मै जानना चाहता था की आख़िर हुआ क्या है। परन्तु मुझे कोई बताने को तैयार ही नही था सब रोये ही जा रहे थे। मेरे पापा कई जगहों पर फ़ोन लगा कर सबको बुला रहे थे। मुझे यह बताने के लिए किसी के पास समय नही था की आख़िर ऐसा क्या हो गया है। फिर मेरी नज़र अचानक मेरी दादी पर पड़ी। वह सो रही थी। उन्हें बहुत सारी औरतें घेरकर रो रही थी। मुझे कुछ समझ नही आ रहा था की आख़िर ये सब क्या हो रहा है। मै पापा के पास गया और पूछा की पापा दादी सो रही है लेकिन उन्हें इतने लोग घेरकर बैठे है और रो रहे है। सब ऐसा क्यो कर रहे है ? पापा ने कहा की दादी अब कभी भी नही उठेंगी तुमसे बोलेगी भी नही। मैने पूछा मुझसे ऐसी कौनसी गलती हो गई। दादी मुझसे बात क्यो नही करेंगी। तब मुझे पता चला कि मेरी दादी शांत हो गई है। रात को १ बजे उनकी मौत हो गई। मैने इससे पहले कभी किसी को मरते हुए नही देखा था। मै रोने लगा। मै उन्हें सबसे ज्यादा प्यार करता था। वह पिछले १ महीने से बीमार थी और उन्होंने १ महीने से कुछ भी नही खाया था। २१ दिन उन्होंने सिर्फ़ पानी और ज्यूस पीकर निकाले। वह कुछ बोल भी नही पाती थी। और फिर २१ दिनों के बाद उनकी मौत हो गई वह मुझे अकेला छोड़ कर चली गई.मै कई दिनों तक उन्हें याद करके रोता रहा। परन्तु धीरे -धीरे ये समझ गया कि हर कोई हमारा साथ अंत तक नही दे सकता। किसी मज़बूरी के कारण वह हमें छोड़ कर चला जाता है और कई बार धोखा देकर। कई लोग अपना स्वार्थ पुरा करके हमें बिच राह मै छोड़ देते है और कई लोग हमें प्यार करते हुए भी मजबूरीवश हमें छोड़ देते है। इससे हमारी ज़िन्दगी ख़त्म नही हो जाती। मेरी दादी कि यादें हमेशा मेरे साथ रहेंगी, मै उन्हें कभी नही भूल पाऊंगा।
मेरी दादी कि स्मृति मैं .......

रविवार, 1 फ़रवरी 2009

बहादुर पटेल की कविता

नदी
मेरे भीतर एक नदी बहती हुई
उसके शीतल जल से
हहराता हुआ एक पेड़ घना
हवा के झोको से हिलता

वही किनारा पर
मिटटी गाँव की
बस चुकी है फेफडो में मेरे

एक कुम्हार बनाता है घडा
नदी से भरता घडा
बिल्कुल ठंडा और सुगंध से भरा पानी
जिसे पीते ही गलने लगती है प्यास
उदास चेहरे
पपडाते होठो पर
सुकून की छाया तैरने लगती है

नदी मेरे भीतर पैदा करती है एक संसार।