सोमवार, 24 नवंबर 2008

नवीन सागर की कविता

देना

जिसने मेरा घर जलाया
उसे इतना बड़ा घर
देना कि बाहर निकलने को चले
पर निकल न पाए

जिसने मुझे मारा
उसे सब देना
मृत्यु न देना

जिसने मेरी रोटी छीनी
उसे रोटियों के समुद्र में फेंकना
और तूफान उठाना

जिनसे मैं नहीं मिला
उनसे मिलवाना
मुझे इतनी दूर छोड़ आना
कि बारबार संसार में आता रहूँ

अगली बार
इतना प्रेम देना
कि कह सकूं : प्रेम करता हूँ
और वह मेरे सामने हो।

मंगलवार, 18 नवंबर 2008

पहली बार लिखा

मैंने आज से अपना ब्लॉग शुरू किया है।