नदी
मेरे भीतर एक नदी बहती हुई
उसके शीतल जल से
हहराता हुआ एक पेड़ घना
हवा के झोको से हिलता
वही किनारा पर
मिटटी गाँव की
बस चुकी है फेफडो में मेरे
एक कुम्हार बनाता है घडा
नदी से भरता घडा
बिल्कुल ठंडा और सुगंध से भरा पानी
जिसे पीते ही गलने लगती है प्यास
उदास चेहरे
पपडाते होठो पर
सुकून की छाया तैरने लगती है
नदी मेरे भीतर पैदा करती है एक संसार।
सुनाऊंगा कविता
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शहर के आखिरी कोने से निकालूँगा
और लौट जाऊंगा गाँव की ओर
बचाऊंगा वहां की सबसे सस्ती
और मटमैली चीजों को
मिट्टी की ख़ामोशी से चुनूंगा कुछ शब्द
बीजों के फूटे ...
14 वर्ष पहले
5 टिप्पणियां:
bahut badhiya.
isi tarah shreshth rachanaye hum tak pahuchate rahe.
बिल्कुल ठंडा और सुगंध से भरा पानी
जिसे पीते ही गलने लगती है प्यास
उदास चेहरे
पपडाते होठो पर
सुकून की छाया तैरने लगती है
wah! wah!
bahut hi sunder chitran kiya hai aapne..........
aapane meri kavitayen lagai achchha kiya. lekin kuchh aur achchhi kavitayen aur bhi rachanakar likh rahe hain.
kafi achhi hai
www.salaamzindadili.blogspot.com
नदी मेरे भीतर पैदा करती है एक संसार।
Behatareen panktiyan
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