देना
जिसने मेरा घर जलाया
उसे इतना बड़ा घर
देना कि बाहर निकलने को चले
पर निकल न पाए
जिसने मुझे मारा
उसे सब देना
मृत्यु न देना
जिसने मेरी रोटी छीनी
उसे रोटियों के समुद्र में फेंकना
और तूफान उठाना
जिनसे मैं नहीं मिला
उनसे मिलवाना
मुझे इतनी दूर छोड़ आना
कि बारबार संसार में आता रहूँ
अगली बार
इतना प्रेम देना
कि कह सकूं : प्रेम करता हूँ
और वह मेरे सामने हो।
सुनाऊंगा कविता
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शहर के आखिरी कोने से निकालूँगा
और लौट जाऊंगा गाँव की ओर
बचाऊंगा वहां की सबसे सस्ती
और मटमैली चीजों को
मिट्टी की ख़ामोशी से चुनूंगा कुछ शब्द
बीजों के फूटे ...
14 वर्ष पहले
3 टिप्पणियां:
yeh bahut hi pyari kavita hai.wah!
First of all Wish u Very Happy New Year...
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